kanchan singla

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धरती पुत्र

हर रोज एक रक्षक शहीद होता है ऐसे....
धरती मां का कोई तारा उससे छूट कर,,
आसमां के आंगन में बिछ जाता है जैसे...!!

हे !! धरती पुत्र तुम जाओ ना ऐसे....
गम हम दिखा पाएं कैसे...??
इन बहती आखों को और 
सीने की इस तकलीफ़ को दिखाएं कैसे...??

हो तुम हौसलों की मिशाल...
सर्दी गर्मी या हो बारिश की ऋतु...
तपती जलती रेत हो या हों बर्फ के पर्वत...
ओले बरसें या गर्म लू के हों थपेड़े...
भीषण चलती आंधी हो या फिर रात काटनी भारी हो...
सूखी रोटी खाकर जो दिन रात काटे हो...
जा खड़े युद्ध में दुश्मन को ललकारे हो...
सुन हुंकार तुम्हारी दुश्मन भी थर थर कांपे जो...!!


एक याद सी भारी हो...
दिल में उमड़ी जैसे कोई क्यारी हो...
त्यौहार हों या आई कोई खुशखबरी प्यारी हो...
मां मैं करता हूं बात कहकर काट दिए तार, अब दिल भारी हो...
पत्नी को फिर से मिलने का वादा हो...
बहन की अगली राखी का धागा हो...
छुट्टी पर घर जाने का इरादा हो...


एक दिन सब रह गया अधूरा वो...
मां के खाने का वह कोर जो रह गया आधा....
मिलने का वो वादा टूट गया, शाश्वत सा आंखो में रह गया...
टूटा राखी का हर धागा...

जो लड़ते लड़ते दुश्मन को हराकर
खाई सीने पर वह गोली
लाज बचा कर भारत मां की
शहीद हुआ वह लाल
देखों आज आंख हुई सबकी भारी
हर दिल दे रहा आज भाव भीनी अंतिम विदाई

फूल हैं बरसे
वीर गान है गूंजे
धरती मां अपने पुत्र को उठाए
सौंप आए अंबर को
अंबर पर चमकते वो सितारे 
भारत मां की आंख के तारे...!!


लेखिका - कंचन सिंगला


 







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9 Comments

Abhinav ji

12-Dec-2021 11:57 PM

Heart touching

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Ravi Goyal

11-Dec-2021 08:00 AM

वाह बहुत खूबसूरत वीर रस से ओतप्रोत रचना 👌👌

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Swati chourasia

11-Dec-2021 07:11 AM

Very beautiful 👌

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